ब्रह्मयामल के चौदहवें अध्याय में लिखा है —
“शरद्वीपेच वेदाग्निः शाकद्वीपेच साध्यकः । भूमध्ये ब्रह्मचारी च देवलो द्वारिकापुरे । कलिङ्गे ज्ञानविप्रस्यादाचार्यो गौडदेश के । धर्माणे धर्मवक्ताच पांचाले शास्त्रिसंज्ञकः । सारस्वते शुभमुखो गान्धारे चित्र पंडितः । कर्णाटे शुभ मुखश्चैव नैपाले देवविप्रकः ।।”
शरद्वीप में पाए जाने वाले शाकद्वीपीय ब्राह्मणों को वेदाग्नि तथा शाकद्वीप में साध्य के नाम से जाना जाता है। भूमध्य में ये ब्रह्मचारी, द्वारिकापुरी में देवज्ञ, कलिंग (उड़ीसा) में ज्ञानी विप्र, गौड़ (बंग प्रान्त) में शाकद्वीपीय ब्राह्मणों को आचार्य, धर्मारण्य (अमरकंटक) में धर्मवक्ता, पंजाब में शास्त्री, सारस्वत (काश्मीर) में शुभमुख, गन्धार में चित्रपंडित, कर्नाटक (मैसूर) में सुब्रमण्यम्, और नेपाल में शाकद्वीपीय ब्राह्मण देवब्राह्मण के नाम से जाने जाते हैं ।
ज्ञातव्य हो कि शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के ये स्थानिक नाम भेद है, न कि कोई आन्तरिक विशेष भेद …
भारत के पूर्व और उत्तर में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का विभक्तिकरण ‘पूर’ के अनुशार हुआ है। कुल पुरों की संख्या हालाकि ७२ ही है, लेकिन इनमें कुछ और भी विभक्तिकरण हुए हैं जिससे कि यह संख्या 100 के पार चली गई है ।
पूर्व और उत्तर में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मण अपने अपने आस्यपद (उपाधि) के नाम से जाने गए, जो साधारणतया “मिश्र, पाण्डेय, पाठक, पंडित, ओझा, शुक्ल, बाजपेयी, उपाध्याय, शर्मा, गर्ग और भट्ट” आदि हैं।
आस्यपद (उपाधि) के अनुशार उड़ीसा में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मण “महापात्र, मिश्र” के नाम से जबकि बंगाल में ए लोग “आचार्य” के नाम से जाने जाते हैं ।
भारत के पश्चिम में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का विभक्तिकरण ‘खाप’ के अनुशार हुआ है। कुल मुख्य खापों की संख्या १८ ही है, लेकिन इनमें आगे चलकर कुछ और भी वर्गीकरण हुए हैं जिससे की यह संख्या २० के पार चली जाती है ।
पश्चिम में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मणों में पाए जाने वाले आस्यपद (उपाधि) का नाम साधारणतया “सेवग, शर्मा, भोजक, कुवेरा, हटीला, कटारिया, मथुरिया, लोधा, जंगला, छापरवाल, बलध, आसिवाल, मुन्धाडा, देवेरा, लल्लड, भरतानी, सांवलेरा, हिरगोला, भीनमाल, मेडतवाल या फिर अबोटी” आदि उद्बोधन रहे हैं।
इस तरह शाकद्वीपीय ब्राह्मण भारत में विभिन्न नामों से जाने गए हैं ।
जय भास्कर !!
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