अयोध्या के प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर के निर्माण का श्रेय अयोध्या के तत्कालीन शाकद्वीपीय ब्राह्मण राजा श्री दर्शन सिंह को जाता है।

शाकद्वीपीय ब्राह्मण शिरोमणि, ब्राह्मण राजा बहादुर श्री दर्शन सिंह ने 19 वीं सदी के पूर्वकाल में अयोध्या के दर्शंनगर छेत्र में भव्य सूर्य कुंड का निर्माण करवाया था।

शाकद्वीपीय ब्राह्मण राजा बहादुर दर्शन सिंह

बहुत से लोग इस विषय की जानकारी से ही विस्मित हो जाते हैं कि राजा बहादुर दर्शन सिंह अगर शाकद्वीपीय ब्राह्मण थे तो उनके नाम का टाइटल आखिर सिंह कैसे पड़ा ? शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का टाइटल तो हमेशा से ही मिश्र, पाठक, पाण्डेय आदि जैसे रहा है तो फिर उनका टाइटल सिंह कैसे पड़ा ?

इस सवाल के जबाब के लिए अतीत में बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं है। यह बात अंग्रेजों के ही राज्य काल की है।

दरअसल अंग्रेज अपने शाशन काल में, साम्राज्य के अधीन आने वाले राजाओं को सिंह टाइटल से नवाजा करते थे। उस काल में प्रायः जितने भी हिन्दू राजा हुवे उन सबका टाइटल सिंह ही हुवा करता था।

अयोध्या में शाकद्वीपीय राजाओं का इतिहास काफी पुराना रहा है।

वर्तमान काल खंड में राजा दर्शन सिंह की बंसावली में उनके बंसज के रूप में श्री विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र तथा शैलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्र का नाम आता है, जिनकी माँ का नाम महारानी विमला देवी था।

धर्म नगरी अयोध्या में राजा दर्शन सिंह का आलिशान महल आज भी है। राजा बहादुर दर्शन सिंह का इंतकाल १८४४ में वर्णित है।

Raja-Darshan-Singh

अयोध्या के राजा दर्शन सिंह

राजा बहादुर दर्शन सिंह के बारे में वर्णन करते करते शायद हमलोग अपने विषय से भटक गए हैं। तो आइये फिर से अयोध्या के प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर के निर्माण तथा सूर्य उपासना केंद्र के बारे में जानकारी प्राप्त करें।

अयोध्या का प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर, अयोध्या तथा फ़ैजाबाद से लगभग समान दुरी पर स्थित दर्शन नगर कसबे में स्थित है।

दर्शन नगर का नाम राजा दर्शन सिंह के ही नाम पर पड़ा था। शाकद्वीपीय ब्राह्मण अपने अराध्य देव सूर्य की पूजा के लिए आदिकाल से जाने जाते रहे हैं। राजा दर्शन सिंह भी अपने अराध्य देव सूर्य की आराधना करने के लिए इस प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर का निर्माण करवाए थे।

घोषार्क तीर्थ की कथा

अयोध्या का प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर जिस स्थल पर स्थित है उस जगह पर प्राचीन काल में ‘घोषार्क तीर्थ’ स्थान हुवा करता था। इस बात का प्रमाण महान डच इतिहासकार हंस बेकर की पुस्तक “अयोध्या” से मिलता है।

‘घोषार्क तीर्थ’ का वर्णन स्कन्द पुराण में भी है। स्कन्द पुराण के अनुसार यह तीर्थ स्थल सभी पापों को नाश करने वाला है।

‘घोषार्क तीर्थ’ की महिमा सूर्य मंदिर तथा कुंड स्नान के लिए आदि काल से ही प्रसिद्ध रहा है।

पुराण की एक कथा के अनुशार उस काल में एक घोष नामक राजा हुवा करते थे, जो एक बार भ्रमण करते हुवे जब उस स्थान से गुजरे तो उन्होंने वहाँ सरोवर में ऋषिओं को स्नान करते हुवे देखा। वे लोग स्नान के बाद वहाँ संध्या बंदन तथा पूजा आदि किया करते थे।

राजा घोष के भी मन में उस सरोवर में स्नान करने की तीब्र इच्छा हुई अतः वे वहाँ स्नान करने चले गए।

कहते हैं कि स्नान करते ही राजा घोष का शारीर दिव्य हो गया। तदोपरांत उन्होंने वहाँ रह रहे ऋषि, मुनिओं से उस तीर्थ की महत्ता के बारे में प्रश्न पूछा।

तीर्थ की महिमा जानकर राजा घोष ने वहाँ सूर्य भगवान की आराधना और स्तुति की। उनकी पूजा से प्रशन्न होकर भगवान  सूर्यदेव ने उन्हें दर्शन दिए तथा उन्हें आशीष देकर अंतर्ध्यान हो गए।

कहते हैं जिस स्थान पर सूर्यदेव प्रगट हुवे थे वहाँ उनके तेज से एक प्रतिमा बन गई। राजा घोष ने सूर्यदेव की उस प्रतिमा का वही प्राण प्रतिष्ठा करवाया तथा वहाँ मंदिर बनाकर पूजा अर्चना की। उन्होंने सूर्य कुंड का भी निर्माण करवाया।

राजा घोष के नाम पर तभी से उस तीर्थ स्थान का नाम ‘घोषार्क तीर्थ’ पड़ा, तथा लोग उसे इसी नाम से पुकारने लगे।

डच इतिहासकार हंस बेकर के अनुशार उस स्थान पर पौष महीने में मकर संक्रांति के दिन अयोध्या के प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर में पूजा स्नान करने की बड़ी महत्ता बताई गई है।

हंस बेकर आगे लिखते हैं कि प्राचीन मान्यता के अनुशार उस दिन लोगों की वहाँ बहुत भीड़ उमड़ती है, तथा लोग वहाँ प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर में स्नान कर तथा सूर्य उपासना कर बड़े पूण्य के भागी बनते हैं।

प्राचीन काल से निभाई जा रही परंपरा उतनी ही सिद्दत के साथ राजा बहादुर दर्शन सिंह द्वारा जीर्णोद्धार किये गए तथा निर्मित सूर्यकुंड में भी उस काल में मनाई जाती रही। तथा उसका निर्वहन आज भी ठीक वैसा ही किया जाता है।

स्कन्द पुराण तथा रुद्रयामल की कथाओं के अनुशार सूर्य कुंड में स्नान करने से कुष्ठ और चरम रोग से मुक्ति मिलती है।  सूर्यकुंड में स्नान, दर्शन और पूजन का विधान शायद इसी सोच से समाज में बलवती हुई है।

वर्तमान काल में अयोध्या के प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर स्थान पर  मेले की ब्यवस्था की देख भाल राजा दर्शन सिंह के बंसजों के द्वारा किया जाता है। जबकि सूर्य मंदिर तथा सूर्य कुंड के रख रखाव की जिम्मेवारी अयोध्या के हनुमान गढ़ी के प्रबंधन के पास है।

हनुमान गढ़ी का प्रबंधन ने समय के अनुशार प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर में स्थापित मुर्तिओं में कुछ फेर बदल किया है। इस श्रृंखला में सूर्यदेव की प्राचीन मूर्ति के चरणों में दोनों तरफ उनके पुत्र और पुत्री क्रमशः शनि देव और यमुना देवी की अष्टधातु की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं।

इसके अलावा सूर्यकुंड की खुदाई से प्राप्त एक और सूर्य की प्रतिमा को भी वही पर स्थापित कर दिया गया है। अदिति माता की संगमरमर की प्रतिमा तथा गर्भगृह में कुछ अन्य मूर्तियाँ जैसे की राम जानकी, शिव पार्वती, गणेश कार्तिकेय, हनुमानजी तथा शालिग्राम के विग्रह भी स्थापित किये गए हैं।

अयोध्या का प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर की बात जब चल ही रही है तो इस क्रम में शाकद्वीपीय ब्राह्मण राजा दर्शन सिंह के बारे में कुछ और भी तथ्य समाज के लोगों के सूचनार्थ यहाँ उजागर करने जरूरी हैं।

राजा दर्शन सिंह ने अयोध्या स्थित अपने महल राजसदन के शिवाला में सूर्यकुंड में स्थापित भगवान सूर्य की प्रतिमा की तरह ही एक और प्रतिमा स्थापित करवाई थी।

राजमहल के अन्दर भगवन सूर्य की प्रतिमा के स्थापित करने का तर्क यही दिया जाता है कि राजकार्य के वजह से राजा को प्रत्येक दिन सूर्य कुंड जाना संभव नहीं होता होगा अतः अपने अराध्य की पूजा के लिए उन्होंने उनकी एक प्रतिमा महल के प्रांगण में भी पुरे विधि विधान से स्थापित करवाई थी।

अयोध्या में राजा दर्शन सिंह के महल में स्थापित शिवाला को आज लोग ‘श्री दर्श्नेश्वर नाथ महादेव’ के नाम से पुरे अवध में जानते हैं।

प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर के बारे में किंवदंति

अयोध्या के प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर के बारे में एक और बड़ी ही दिलचस्प किंवदंति प्रचलित है। हलाकि इस किंवदंति का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, फिर भी लोगों की जानकारी के लिए उसे भी यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।

कहा जाता है कि एक बार राजा दर्शन सिंह शिकार करने के लिए उस क्षेत्र में घूम रहे थे, तो उन्हें जोड़ो की प्यास लगी। उनके सेवक ने जब जल को ढूंढा तो उसे थोड़ी दूर पर एक कुंड मिला। उस कुंड का जल बड़ा निर्मल था। सेवक ने उसी कुंड का जल लाकर अपने राजा को प्यास बुझाने के लिए दिया।

कहते हैं राजा ने उस जल का पान किया तथा उसके कुछ भाग को अपने शरीर पर हुवे चरम रोग पर रगडा। थोड़े ही देर में उनके शरीर पर हुवे चर्म रोग जैसे ठीक हो गया।

राजा को लगा उस स्थान पर मानो कोई दैविक शक्ति है। अतः उन्होंने 7 दिनों तक वहाँ तपस्या की।

सातवें दिन राजा को एक आकाशवाणी सुनाई पड़ी जिसके आज्ञा अनुशार उन्होंने वहाँ उस स्थान पर खुदाई प्रारंभ करवाई।

खुदाई में राजा को सात घोड़ों पर सवार एक सूर्यदेव की मूर्ति, शिवलिंग तथा ढेरो खजाना प्राप्त हुवा। राजा ने उस खजाने से वहाँ एक विशाल सूर्यकुंड तथा सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया।

वही सूर्यकुंड तथा सूर्य मंदिर आज अयोध्या में प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

साभार:

१. अयोध्या: हंस बेकर, पब्लिशर – ग्रानिनजेन ओरिएण्टल स्टडीज, नीदरलैंड एडिशन, १९८६ (अंग्रेजी)
२. अयोध्या का इतिहास, अवधवासी लाला सीताराम बी.ए., प्रकाशक: आर्य बुक डिपो, नई दिल्ली
३. Shaharnama Faizabad, Edited by यतीन्द्र मोहन प्रताप मिश्र
४. सूर्यकुंड मंदिर के सर्वेक्षण रिपोर्ट
५. अयोध्या में प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर के बारे में प्रचलित किंवदंति

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