आइये, आज शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास के बारे में एक संक्षिप्त विवेचना करें। इसका अध्ययन मुझे पूरा विश्वास है कि आपको विस्मयों से भर देगा।

सनातन कथा के अनुशार स्वयम्भुव मनु के दो पुत्र हुवे, प्रियव्रत और उत्तानपाद। प्रियव्रत बड़े पुत्र थे।

प्रियव्रत का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मति से हुआ। इनसे दस पुत्र और एक कन्या का जन्म हुवा। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से तीन पुत्रों का जन्म हुवा था।

कहते हैं कि जब प्रियव्रत को पता चला कि सूर्य पृथ्वी के सिर्फ आधे भाग को ही प्रकाशित करता है, तो उन्होंने बाकि भूभाग को भी प्रकाशमान करने की मनोवृति लिए ज्योर्तिमय रथ पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा की।

इस तरह रथ के पहियों से जो लीक बना वे सात समुद्र बने तथा उससे संलग्न भूभाग सप्तद्वीप कहलाये।

सातो द्वीप जिनका नाम जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्रौञ्च, शाक और पुष्कर था, क्रमशः क्षार, इक्षुरस, मदिरा, घी, दूध, दधि और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे थे ।

विभिन्न पुराणों में वर्णित इन सात द्वीपों में से जम्बूद्वीप में आज का भारतवर्ष आता है जबकि शाकद्वीप का सम्बन्ध आज के भारत में बसे हम शाकद्वीपीय ब्राह्मणों से है।

शाकद्वीप कहाँ स्थित है?

कुछ आधुनिक विद्वानों के मतानुशार मध्य एशिया, पहले शकद्वीप के नाम से प्रसिद्ध था। यूनानी इस देश को ‘सीरिया’ कहते थे। उसी मध्य एशिया में रहनेवालों को शाक अथवा शक कहा जाता था।

एक समय यहाँ रहने वाले लोग बड़े प्रतापशाली थे। ये लोग अपने आपको देवपुत्र मानते थे।

भारत में प्रस्थिपित होने के पश्चात अपने यश और प्रताप के बदौलत इन्होने यहाँ भी अपना दबदबा कायम कर लिया था। इनलोगों ने करीब 200 वर्ष तक भारत में एकछत्र राज्य किया । कनिष्क और हविष्क नाम के इनके बड़े बड़े प्रतापशाली राजा हुए हैं।

वैदिक काल में शक प्राचीन आर्यों के सम्बन्धी रहे हैं।

भारत में प्रचलित शक संवत जो आज भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है, बहुत प्राचीन है। इसका संबंद्ध इन्ही शको से निकाला जाता है। 78 ई. पूर्व इस संवत को कुषाण राजा ‘कनिष्क महान’ ने प्रराम्ब्भ किया था। उन्होंने इसे अपने राज्य आरोहण की तिथि को एक उत्सव के रूप में मानाने तथा इसे यादगार बनाने के लिए शुरू किया था।

‘बुदुआ’ के अनुशार शक संवत्‌ को उज्जयिनी के क्षत्रप ‘चेष्टन’ ने प्रचलित किया था। शक राज्यों को तो राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने समाप्त कर दिया लेकिन उनका शक संवत्‌ अभी तक भारतवर्ष में चल रहा है।

शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास की गौरव गाथा

पुराणों में शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि शाकद्वीप के शासक प्रियव्रत के पुत्र मेधातिथि थे। कहा जाता है कि इन द्वीपों के अलग अलग वर्ण, उपद्वीप, पर्वत, सागर, इष्टदेव, नदियाँ तथा शासक हुवे।

शाकद्वीप में सात उपद्वीप बने थे। जिनका नाम क्रमश: पुरोजव, मनोजव, पवमान, धुम्रानीक, चित्ररेफ, बहुरूप और चित्रधार पड़ा। इन उपद्वीपों का नाम मेधातिथि से जो पुत्र हुए, उन पुत्रों के नाम पर ही रखा गया था। मेधातिथि के पुत्रों ने इन उपद्वीपों पर हजारों वर्षों तक राज किया।

महाद्वीप शाकद्वीप में ईशान, उरुशृङ्ग, बलभद्र, शतकेसर, सहस्रस्रोत, देवपाल और महानस नामक सप्त मर्यादापर्वत थे। वहां अनघा, आयुर्दा, उभयस्पृष्ठि, अपराजिता, पञ्चपदी, सहस्रस्रुति और निजधृति नामक सात नदियाँ थी।

शाकद्वीप की जातियाँ (वर्ण) ऋतव्रत, सत्यव्रत, दानव्रत तथा अनुव्रत के नाम से जानी जाती थी तथा इनके इष्टदेव श्रीहरि को माना गया।

शाकद्वीप पर शाक नामक वृक्ष बहुतयात में पाए जाते थे, जिसकी मनोहर सुगंध पूरे द्वीप में छाई रहती थी। संभवतया इन शाक के वृक्ष के नाम से ही इस द्वीप का नाम शाकद्वीप पड़ा हो। ऐसी मान्यता है कि भूतकाल में शाकद्वीप के वासी, बीमारियों से दूर तथा हजारों वर्षों तक जीवित रहने वाले होते थे।

शाकद्वीपीय ब्राह्मणों को भोजक, मग ब्राह्मण, सेवग व्यास, याजक, मागी तथा दिव्य ब्राह्मण के नाम से भी जाना जाता है।

दिव्य शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का मुख्य पेशा पूजा-पाठ, पठन-पाठन, पुरोहिति, ज्योतिषी, आचार्य, आयुर्वेदिक् चिकित्सा करना था। इसके अलवा इनका काम कर्म काण्ड, तंत्र-मन्त्र सिद्धि तथा गीत-संगीत द्वारा धार्मिक अनुष्ठानों का कार्य पालन व समापन आदि करना रहा है।

शाकद्वीपीय ब्राह्मण दिव्य कैसे ?

वेद पुराणों के अनुसार शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का उद्दभव सूर्यदेव के अंश से हुआ था। चुकि ये योनिज नहीं थे अतः दिव्य कहलाये। शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास से साफ़ पता चलता है कि ये ब्राह्मण हमेशा से ही अग्रणी सूर्योपासक रहे हैं।

शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के उत्पत्ति सम्बन्धित गाथा का वर्णन नीचे दिया जा रहा है।

शाकद्वीप के राजा प्रियव्रत के पुत्र ‘मेघातिथी’ थे। उन्होंने शाकद्वीप में एक विशाल सूर्य नारायण मंदिर का निर्माण करवाया। उसमें स्वर्ण निर्मित सूर्य प्रतिमा स्थापित की गई। लेकिन उस समय शाकद्वीप में सूर्य भगवान की शास्त्र विधि से पूजा करने वाला कोई ब्राह्मण नहीं था।

मेघातिथी ने सूर्यनारायण की आराधना की। भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर मेघातिथी को साक्षात् दर्शन दिए तथा वरदान मांगने को कहा, तब मेघातिथी ने सूर्य भगवान से वर मांगा कि हे भगवन्, मैंने आपका एक मंदिर बनवाया है मगर इस मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कराने वाले तथा विधि-विधान से पूजा करने वाले कोई ब्राह्मण शाकद्वीप में नहीं है । अत: हे भगवन् अब आप ही कोई उपाय सुझाएँ।

भगवान सूर्य ने तदपरान्त मेघातिथी की प्रार्थना पर अपने तेज से अष्ट ब्राह्मण उत्पन्न किये। ये आठों सूर्यपुत्र सामगान करते हुए भगवान से प्रार्थना करने लगे कि हे परम पिता हमारे लिये क्या आज्ञा है ? भगवान सूर्य ने कहा शाकद्वीप में मेघातिथी ने मेरा विशाल मंदिर बनवाया है। तुम लोग वहां जाकर मंदिर में मेरी प्राण प्रतिष्ठा करो, मेरी पूजा-अर्चना विधी विधान से कर इनका कृत्य सुधारो तथा धर्म का प्रचार करो।

इन ब्राह्मणों ने सूर्य भगवान की आज्ञा शिरोधार्य कर मंदिर में सूर्य मुर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की तथा सूर्य/सौर भगवान की विधि-विधान से नियमित पूजा-अर्चना करने लग गये। तभी से इन ब्राह्मणों को शाकद्वीपी ब्राह्मण के नाम से पुकारा जाने लगा।

शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास के गौरव पल

शाकद्वीपीय ब्राह्मण की विशिष्टता, श्रेष्ठता और दिव्यता का प्रमाण शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास पढने पर निम्न आशयों से भी देखने को मिलता है।

मनुस्मृति के अनुसार सूर्यास्त के पश्चात श्राद्ध कर्म निषेध है। कहते हैं कि श्राद्ध कर्म करते वक़्त सूर्य अगर अस्त हो जाए, या किसी कारण वश अगर सूर्यास्त के बाद श्राद्ध करना ज़रूरी हो जाए तो ऐसे में एक शाकद्वीपीय ब्राह्मण को सूर्य वरण करके श्राद्ध संपन्न किया जा सकता है क्योंकि शाकद्वीपीय ब्राह्मण में सूर्य-अंश (सूर्यांश) होता है।

meaning-of-shak

शाकद्वीपी ब्राह्मणों के उत्तमता का परिचय इस प्रमाण से भी मिलता है जिसमें कहा गया है कि एक शाकद्वीपी ब्राह्णण के सम्पूर्ण शरीर में नवग्रह का वास होता है। ???
“शीर्षे सूर्यो विधु नेत्रि मुखे सोमो हच्पिसर्बुधः।
नाभिभिश्दे देशे गुरुश्चैव पृष्ठदेशे च भार्गवः।।
शनि जेहनुधितिश्चैव राहुकेतो पदद्वये ।
ग्रहविप्रशरीरेषु ग्रहाः स्यु: सुविराजिताः ।।”
ॐ सूर्याय नमः !!

शाकद्वीपीय ब्राह्मणों में गोत्र, पूर और खाप क्या हैं ?

जम्बू द्वीप में शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का आगमन कैसे हुआ इसकी लम्बी कहानी है और विभिन्न मत हैं। इसके बारे में विस्तार से चर्चा किसी दुसरे पोस्ट में करूँगा।

फ़िलहाल आइए, शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास के अध्ययन के सिलसिले में भारत में बसे इन ब्राह्मणों के ‘पूर’ और ‘खाप’ के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त कर लें।

भारत के पूर्व और उत्तर में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का विभक्तिकरण ‘पूर’ के अनुशार हुआ है। कुल पुरों की संख्या हालाकि ७२ ही है, लेकिन इनमें कुछ और भी विभक्तिकरण हुए हैं जिससे कि यह संख्या 100 के पार चली गई है । पूर्व और उत्तर में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मणों में पाए जाने वाले आस्यपद (उपाधि) का नाम साधारणतया “मिश्र, पाण्डेय, पाठक, पंडित, ओझा, शुक्ल, बाजपेयी, उपाध्याय, शर्मा, गर्ग और भट्ट” हैं।

वहीं पश्चिम में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का विभक्तिकरण ‘खाप’ के अनुशार हुआ है। कुल मुख्य खापों की संख्या १८ ही है, लेकिन इनमें आगे चलकर कुछ और भी वर्गीकरण हुए हैं जिससे की यह संख्या २० के पार चली जाती है । पश्चिम में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मणों में पाए जाने वाले आस्यपद (उपाधि) का नाम साधारणतया “सेवग, शर्मा, भोजक, कुवेरा, हटीला, कटारिया, मथुरिया, लोधा, जंगला, छापरवाल, बलध, आसिवाल, मुन्धाडा, देवेरा, लल्लड, भरतानी, सांवलेरा, हिरगोला, भीनमाल, मेडतवाल या फिर अबोटी” आदि उद्बोधन रहे हैं।

यहाँ एक बात ध्यान देने की है कि पश्चिम में बसे शाकद्वीपी ब्राह्मणों का खाप और आस्यपद (उपाधि) अलग अलग नहीं हैं, जब कि पूर्व और उत्तर में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का पूर और आस्यपद (उपाधि) अलग अलग हैं।

शाकद्वीपीय ब्राह्मणों में शादी विवाह

भारत के पूर्व और उत्तर में बसे शाकद्वीपीय ब्राह्मण शादी विवाह में सर्व प्रथम ‘पूर’ का मिलान करते हैं तत्पश्चात ‘गोत्र’ का मिलान किया जाता। एक ही ‘पूर’ में शादी पूर्णतया निषिद्ध है, जब की किन्ही अपरिहार्य परिस्थिति में एक ही ‘गोत्र’ में शादियाँ की जा सकती है। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि शाकद्वीपी ब्राह्मणों में ‘पूर’ रक्त संबंद्ध से है, जब की ‘गोत्र’ गुरु से सम्बंधित होता है।

पश्चिम में बसे शाकद्वीपी ब्राह्मणों का शादी विवाह एक ही खाप में जिसे ये लोग ‘गोत्र’ भी कहते हैं सर्वथा बर्जित है।

शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की दो मुख्य शाखा ‘मग ब्राह्मण’ तथा ‘भोजक’ ब्राह्मण’ माने जाते हैं । मग ब्राह्मण मूलतः मगध (गया, बिहार) के निवासी बताये जाते हैं, जबकि भोजक ब्राह्मणों का निवास छेत्र मूल रूप से राजस्थान तथा गुजरात के भूभाग रहे हैं । मग ब्राह्मणों में पूर का विवरण मिलता है जबकि भोजक ब्राह्मणों में पूर की जगह खाप का बिवरण मिलता है।

शाकद्वीपीय ब्राह्मण इतिहास का वर्णन भविष्य पुराण, विष्णु पुराण, साम्ब पुराण, पद्म पुराण, वायु पुराण तथा श्रीमद् भागवत पुराण आदि ग्रन्थों में विस्तार से देखने को मिलता है।

शाकद्वीपी ब्राह्मणों की कुछ महान विभूतियाँ

शाकद्वीपीय कुल में कई विद्वान हुए हैं जिनकी विद्वत्ता ने भारत को गौरवान्वित किया है। इन्होंने राजनीति, अध्यात्म, चिकित्सा, तन्त्र, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्र में अपनी ख्याति दिखाई। आर्यभट, आचार्य चाणक्य, वराहमिहिर, भास्कराचार्य, कमलाकर भट्ट, बाणभट्ट, शिवराज आचार्य कौण्डिन्न्यायन, पुष्यमित्र शुंग, श्रीभागवतानंद गुरु, कौटिल्य, विष्णु गुप्त, आचार्य विष्णु शर्मा आदि प्रमुख शाकद्वीपीय विद्वान् हुए हैं।

जयति जय, जय, जय भास्कर !!

कुछ अन्य महत्वपूर्ण रोचक तथ्य:

अयोध्या का प्राचीन सूर्य कुंड मंदिर: सूर्य उपासना केंद्र, दर्शननगर, फैजाबाद 
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के बारे में कुछ ऐतिहासिक तथ्य 
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के गोत्र और पूर की कुछ विशिष्ट जानकारीयाँ 
Where is Shakdwip? : A Study from the Glimpse of History 
Who are Shakdwipiya Brahmins? : A tale of Divya Brahmins in India